ग़ज़ल
तुम अपनी सोई हुई बुध्दि को थोड़ा जगा लो,
ये जनादेश है इसे अपने भेजे में ठीक से बैठा लो,
कुर्सी किसी के बाप की जाहगीर नहीं होती,
आग सुलगने से पहले बस अपना मकान बचा लो.
एक-एक कर के आखिर बिखर ही रहे हो,
पूरी तरह टूटने से पहले बाकी मोहरों को उठा लो.
हमेशा राजनीति की भाषा बोलने से अच्छा,
अपने मुँह को किसी अच्छे दर्जी से सिलवा लो.
संविधान को पैरों की जूती समझने वालों,
तुम लोग अपने पैर खुद-ब-खुद कटवा लो.
तुम अपनी सोई हुई बुध्दि को थोड़ा जगा लो,
ये जनादेश है इसे अपने भेजे में ठीक से बैठा लो.
_pk_Nobody_