Tuesday, December 17, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

कुछ ख्वाब अधूरे हैं, 
कुछ अनजान रास्ते हैं, 
हर अंधेरी रात के बाद, 
दिन के दिलकश नजारें हैं.

न जाने ये कैसा रिश्ता है, 
न तुम हमारे हो, न हम तुम्हारे हैं.

ज़ज़्बातों की धज्जियां उड़ाकर, 
आज भी हम एक दूसरे के सहारे हैं.

जिस मोहब्बत के समंदर में हम तैर रहे हैं, 
एक दिन उसी समंदर में हम बेशक डूबने वाले हैं.

_pk_Nobody_

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