ग़ज़ल
क्या जो दिख रहा है वही हो रहा है?
इंसान खुली आँखों से न जाने क्यों सो रहा है?
जब बाहर से सभी की ख़ुशी रज़ामंदी नज़र आ रही है,
तो फिर हमारा दिल अंदर से न जाने क्यों रो रहा है?
गंदगी फैला कर जिसे मैली कर दी,
उसी में जा कर हर एक अपने पाप क्यों धो रहा है?
दूसरों से फल की अपेक्षा करने वाला,
बीज की जगह न जाने क्यों काटों को बो रहा है?
इंसान दिखावे की ख़ुशी में शरीक हो कर,
न जाने कितने रिश्ते नातों को खो रहा है?
क्या जो दिख रहा है वही हो रहा है?
इंसान खुली आँखों से न जाने क्यों सो रहा है?
_pk_Nobody_
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