ग़ज़ल
तू ही मेरी सुबह, तू ही शाम है,
तू ही मेरी चाय और तू ही मेरा जाम है,
थक हार कर जब भी मैं घर आता हूं,
तब भी तू ही मेरा चैन और तू ही आराम है.
तू खुश तो मैं खुश, तू नाराज़ तो मैं नाराज़,
तुझसे ही बनता और बिगड़ता मेरा सारा काम है.
हम दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं,
फिर भी न जाने क्यों हमारी मोहब्बत इतनी बदनाम है.
न तू किसी की मोहताज़ है और न मैं किसी का,
न मैं बिकने को तैयार हूं और न ही तेरा कोई दाम है.
हमारे ऊपर किसी की भी जोर आजमाइश नहीं चलती,
क्योंकि ये हमारी पहचान, हमारा रुआब और हमारा कलाम है.
_pk _Nobody _
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