ग़ज़ल
क़ाग़ज़ और कलम का भी कितना अज़ीब रिश्ता है,
क़ाग़ज़ तब तक कोरा है जब तब कलम उस पर नहीं घिसता है,
रंग की बात करें तो दोनों एक-दूसरे से काफ़ी जुदा हैं,
पर दोनों के मिल जाने से ही अच्छे अच्छों का दिमाग पिसता है।
लोग जानबूझकर अपना वक़्त बर्बाद करते हैं,
फिर खुद ही चिल्लाते हैं ये समय इतना क्यों रिस्ता है?
उनसे परेशां मत हो जो तेरी पीठ पीछे बात करते हैं,
वो तेरी बात करते हैं क्यूंकि यह तेरी कमाई प्रतिष्ठा है।
बनाने वाले ने भी तुझे कितना हसीन बनाया है,
ना जाने वो भगवान ही है या कोई फरिश्ता है।
ये प्रवीण हर बात का जवाब मुँह पर ही दे सकता है,
मगर देता नहीं क्यूंकि मेरी परवरिश में बहुत शिष्टा है।
_pk_Nobody_