Tuesday, September 24, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल
तेरी मजबूरियों की वजह से ये इंसां कहीं बेनाम न हो जाए,
हमारी पनपती मोहब्बत कहीं नीलाम हो जाए,
एतिहातन थोड़ी कोशिश तो करके देखते हैं,
वगरना हमारे अनकहे अलफ़ाज़ कहीं सरेआम न हो जाए!

मुझे पता है, हर चीज़ सलीके से होती है,
पर सलीकों से कहीं हमारा इश्क़ बिन गुठली के आम न हो जाए!

माना कि हम बात-बात पर लड़ते रहते हैं,
लेकिन किसी दिन कहीं हमारे दिलों के बीच कत्लेआम न हो जाए!

मुझे ख़बर है कि मेरे लिखे हर लफ्ज़ तेरे अंदर तक उतरते हैं,
लेकिन तुम्हारे कारण कहीं मेरी मोहब्बत की कलम बदनाम न हो जाए!

                                                                       _pk_Nobody_

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