ग़ज़ल
रोज़ जिंदा रहने के लिए जीने की एक आस होना चाहिए,
जिसका फलक तक दीदार कर सकूँ वो चेहरा ख़ास होना चाहिए,
ज़िस्मानी मोहब्बत से मुझे परहेज़ नहीं,
लेकिन इश्क़ के दरमियां भी कुछ अनकहे एहसास होना चाहिए।
साथ जीने मरने की कसमें खाना जरुरी नहीं,
मगर तुम्हारी धड़कनों में मेरी सांस होना चाहिए।
दूरियां कितनी भी क्यों ना बढ़ने लगे हमारे बीच,
पर बातों की यादों का पिटारा हर पल दिल के पास होना चाहिए।
ये प्रवीण हर किसी पर मर मिटने वाला इंसान नहीं,
जिसे दिल से खेलने दे सकूँ वो शख़्स वाकई में ख़ास होना चाहिए।
_pk_Nobody_
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