Saturday, November 9, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

ठंड लगी तो अपनी आग खुद जलाऊंगा, 
किसी और के चूल्हे से कोयला नहीं चुराऊंगा, 
कटनी होगी ज़िन्दगी तो यूँ ही सबे हिज़्र कट जाएगी, 
मगर दूसरे की जगह पर अपना आशियाना नहीं बनाऊंगा. 

उन्हें मेरी वजह से अगर कोई मसला हुआ तो, 
लड़कों की कतार से मैं ही सबसे पहले हट जाऊंगा. 

तुम मेरे जो भी राज़ जानना चाहती हो, 
वो सारे राज़ मैं ही खुद खुलकर तुमको बताऊंगा. 

न ही चाँद और न ही सितारों के वादे करता हूं, 
मैं तो बस तेरे बग़ीचे में अपने दो-चार फूल खिलाऊंगा. 

ठंड लगी तो अपनी आग खुद जलाऊंगा, 
किसी और के चूल्हे से कोयला नहीं चुराऊंगा. 

_pk_Nobody_

Monday, November 4, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

तू सच है तो इतना परेशान क्यों है, 
नकाब ओढ़े शैतानों से हैरान क्यों है, 
तेरा काम तेरी असल पहचान है, 
तो अपनी पहचान से अनजान क्यों है. 

काटों के बावजूद यहाँ सभी बाग़बानी कर रहे हैं, 
मगर सिर्फ़ तेरे दिल और दिमाग़ में ही रेगिस्तान क्यों है. 

हर तरफ बस्तियां ही बसी हुई हैं, 
लेकिन तेरे अंदर का मकान वीरान क्यों है.

न कोई चोट, न कोई जख्म, न कोई घाव, 
तो फिर यह शख्स इतना लहूलुहान क्यों है.

_pk_Nobody_

Sunday, October 13, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

अगर मुल्क दोनों का है तो दोनों होना चाहिए, 
हिन्दुओं को मस्ज़िद से और मुसलमानों को मंदिर से प्यार होना चाहिए, 
अरे छोड़ो सियासत के फालतू पैंतरे आजमाना, 
राम और रहीम दोनों के आबरू की बराबर इज़्ज़त होना चाहिए|

कौन फ़ैसला करेगा ये भी तय कौन करेगा, 
न्यायाधीश भी सभी पक्षों के मुताबिक़ होना चाहिए|

इस पूरे बवाल का परिणाम जो कुछ भी हो, 
लेकिन वो क़ुबूल हर किसी को होना चाहिए|

पंचायतों और मसलों को क्यों ना किनारे रख कर, 
उस विवादित जमीं पर अविश्‍वसनीय हिंदुस्तान होना चाहिए? 

_pk_Nobody_