Friday, December 14, 2018

Ghazal


तूफ़ान बहुत से आए मगर चरागों को जलाए रखा,
आने वाली पीढ़ियों को उन्होंने कुछ इस कदर बचाए रखा ।

जिस बाग़ में आसानी से खिल सके बच्चे,
माँ-बाप ने हमेशा ऐसे बगीचे को सजाए रखा । 

हमारे भीतर के आफ़ताब को कोई बुझा ना सके, 
इसलिए ताह उम्र हमने अँधेरे को दबाए रखा ।

कौन सा दोस्त ना जाने कब और कहाँ दगा दे जाए,
यही सोच कर हमने अपने दुश्मनों से भी हाँथ मिलाए रखा ।

माँगने वालों को सब कुछ दे दिया मगर मैं भी प्रवीण हूँ,
लुटा कर हर चीज़ मैंने बस अपने लिए आसमान बचाए रखा ।

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