ग़ज़ल
मेरे दुःख दर्द की दवा हो तुम,
मेरी साँसों में चलती महकदार हवा हो तुम,
मगर अब कैसे कहें हम दुनिया से कि,
आजकल मुझसे थोड़ा खफ़ा हो तुम ।
वैसे हमें तो कभी नहीं लगा मगर,
ना जाने क्यों लोग सोचते हैं कि बेवफ़ा हो तुम ।
इन गीत और ग़ज़लों में तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं,
लेकिन मेरी कलम कि अनकही एक अफ़वा हो तुम ।
तुम्हारे लिए और क्या कहूँ बस इतना समझ लो,
कि जैसे मीठी शक्कर और घी में घुली रवा हो तुम ।
कि आजकल मुझसे थोड़ा खफ़ा हो तुम ।
_pk_Nobody_(Me)
No comments:
Post a Comment