Tuesday, April 2, 2019

Ghazal By Praveen Kumar Pandey



मस्ज़िद गिराई तो मंदिर खड़ी कहाँ है,
क़त्ल हुआ खुदा का तो ज़िंदा राम कहाँ है,
थे वो भी नियति के मारे आए और चले गए,
इन सब के बीच इंसां आखिर तेरा वजूद कहाँ है ।

था सिकंदर भी बड़ा ताकतवर,
मगर बताओ अब उसका निशां कहाँ है ।

बाँटने वालो ने हमें चालबाज़ी से बाँटा है,
वरना मेरे और तुम्हारे लहू में फर्क कहाँ है ।

चलो कुछ रोज़ तो एक दरिचे में रह लें,
फिर किसे पता कि ना जाने कौन कहाँ है ।


                   
                                        _pk_Nobody_

No comments:

Post a Comment