Tuesday, November 26, 2019

New Ghazal

ग़ज़ल 

क्या जो दिख रहा है वही हो रहा है? 
इंसान खुली आँखों से न जाने क्यों सो रहा है? 
जब बाहर से सभी की ख़ुशी रज़ामंदी नज़र आ रही है, 
तो फिर हमारा दिल अंदर से न जाने क्यों रो रहा है?

गंदगी फैला कर जिसे मैली कर दी, 
उसी में जा कर हर एक अपने पाप क्यों धो रहा है? 

दूसरों से फल की अपेक्षा करने वाला, 
बीज की जगह न जाने क्यों काटों को बो रहा है? 

इंसान दिखावे की ख़ुशी में शरीक हो कर, 
न जाने कितने रिश्ते नातों को खो रहा है? 

क्या जो दिख रहा है वही हो रहा है? 
इंसान खुली आँखों से न जाने क्यों सो रहा है?

_pk_Nobody_

Thursday, November 21, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

तू ही मेरी सुबह, तू ही शाम है, 
तू ही मेरी चाय और तू ही मेरा जाम है, 
थक हार कर जब भी मैं घर आता हूं, 
तब भी तू ही मेरा चैन और तू ही आराम है.

तू खुश तो मैं खुश, तू नाराज़ तो मैं नाराज़, 
तुझसे ही बनता और बिगड़ता मेरा सारा काम है.

हम दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं, 
फिर भी न जाने क्यों हमारी मोहब्बत इतनी बदनाम है.

न तू किसी की मोहताज़ है और न मैं किसी का, 
न मैं बिकने को तैयार हूं और न ही तेरा कोई दाम है.

हमारे ऊपर किसी की भी जोर आजमाइश नहीं चलती, 
क्योंकि ये हमारी पहचान, हमारा रुआब और हमारा कलाम है.

_pk _Nobody _

Saturday, November 9, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

ठंड लगी तो अपनी आग खुद जलाऊंगा, 
किसी और के चूल्हे से कोयला नहीं चुराऊंगा, 
कटनी होगी ज़िन्दगी तो यूँ ही सबे हिज़्र कट जाएगी, 
मगर दूसरे की जगह पर अपना आशियाना नहीं बनाऊंगा. 

उन्हें मेरी वजह से अगर कोई मसला हुआ तो, 
लड़कों की कतार से मैं ही सबसे पहले हट जाऊंगा. 

तुम मेरे जो भी राज़ जानना चाहती हो, 
वो सारे राज़ मैं ही खुद खुलकर तुमको बताऊंगा. 

न ही चाँद और न ही सितारों के वादे करता हूं, 
मैं तो बस तेरे बग़ीचे में अपने दो-चार फूल खिलाऊंगा. 

ठंड लगी तो अपनी आग खुद जलाऊंगा, 
किसी और के चूल्हे से कोयला नहीं चुराऊंगा. 

_pk_Nobody_

Monday, November 4, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

तू सच है तो इतना परेशान क्यों है, 
नकाब ओढ़े शैतानों से हैरान क्यों है, 
तेरा काम तेरी असल पहचान है, 
तो अपनी पहचान से अनजान क्यों है. 

काटों के बावजूद यहाँ सभी बाग़बानी कर रहे हैं, 
मगर सिर्फ़ तेरे दिल और दिमाग़ में ही रेगिस्तान क्यों है. 

हर तरफ बस्तियां ही बसी हुई हैं, 
लेकिन तेरे अंदर का मकान वीरान क्यों है.

न कोई चोट, न कोई जख्म, न कोई घाव, 
तो फिर यह शख्स इतना लहूलुहान क्यों है.

_pk_Nobody_