Tuesday, April 2, 2019

Ghazal By Praveen Kumar Pandey


किस ने किस से क्या कहा हमें क्या पता,
दंगों में हिन्दू मरा या मुसलमान हमें क्या पता,
आग तो दोनों तरफों से लगाई गई थी,
किसका घर जला, किसका बचा हमें क्या पता ।

हम आज़ाद हिंदुस्तान के लोकतंत्र में जन्में इंसां है,
अब बाबर कौन थे और राम कौन थे हमें क्या पता ।

वो बड़ी उजलत में हम से रुसवा होकर चले गए,
ना जाने आबाद हुए या बर्बाद हुए हमें क्या पता ।

नाम तो दोनों का ही बहुत ज़्यादा सुना है,
मगर अब चौकीदार चोर या जीजा चोर हमें क्या पता ।

कुछ लोग कहते हैं कि यह प्रवीण अच्छा लिखता है,
लेकिन वो सब सच बोलते हैं या झूठ हमें क्या पता  
  
                                                                                                                      _pk_Nobody_

Ghazal By Praveen Kumar Pandey



मस्ज़िद गिराई तो मंदिर खड़ी कहाँ है,
क़त्ल हुआ खुदा का तो ज़िंदा राम कहाँ है,
थे वो भी नियति के मारे आए और चले गए,
इन सब के बीच इंसां आखिर तेरा वजूद कहाँ है ।

था सिकंदर भी बड़ा ताकतवर,
मगर बताओ अब उसका निशां कहाँ है ।

बाँटने वालो ने हमें चालबाज़ी से बाँटा है,
वरना मेरे और तुम्हारे लहू में फर्क कहाँ है ।

चलो कुछ रोज़ तो एक दरिचे में रह लें,
फिर किसे पता कि ना जाने कौन कहाँ है ।


                   
                                        _pk_Nobody_

Wednesday, January 23, 2019

Ghazal By Praveen Kumar Pandey (Author)

ग़ज़ल 

मेरे दुःख दर्द की दवा हो तुम,
मेरी साँसों में चलती महकदार हवा हो तुम,
मगर अब कैसे कहें हम दुनिया से कि,
आजकल मुझसे थोड़ा खफ़ा हो तुम ।

वैसे हमें तो कभी नहीं लगा मगर,
ना जाने क्यों लोग सोचते हैं कि बेवफ़ा हो तुम ।

इन गीत और ग़ज़लों में तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं,
लेकिन मेरी कलम कि अनकही एक अफ़वा हो तुम ।

तुम्हारे लिए और क्या कहूँ बस इतना समझ लो,
कि जैसे मीठी शक्कर और घी में घुली रवा हो तुम ।

मगर अब यह प्रवीण दूसरों से कैसे कहे,
कि आजकल मुझसे थोड़ा खफ़ा हो तुम ।

                                        _pk_Nobody_(Me)