Tuesday, September 24, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल
तेरी मजबूरियों की वजह से ये इंसां कहीं बेनाम न हो जाए,
हमारी पनपती मोहब्बत कहीं नीलाम हो जाए,
एतिहातन थोड़ी कोशिश तो करके देखते हैं,
वगरना हमारे अनकहे अलफ़ाज़ कहीं सरेआम न हो जाए!

मुझे पता है, हर चीज़ सलीके से होती है,
पर सलीकों से कहीं हमारा इश्क़ बिन गुठली के आम न हो जाए!

माना कि हम बात-बात पर लड़ते रहते हैं,
लेकिन किसी दिन कहीं हमारे दिलों के बीच कत्लेआम न हो जाए!

मुझे ख़बर है कि मेरे लिखे हर लफ्ज़ तेरे अंदर तक उतरते हैं,
लेकिन तुम्हारे कारण कहीं मेरी मोहब्बत की कलम बदनाम न हो जाए!

                                                                       _pk_Nobody_

Sunday, September 22, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल

रोज़ जिंदा रहने के लिए जीने की एक आस होना चाहिए,
जिसका फलक तक दीदार कर सकूँ वो चेहरा ख़ास होना चाहिए,
ज़िस्मानी मोहब्बत से मुझे परहेज़ नहीं,
लेकिन इश्क़ के दरमियां भी कुछ अनकहे एहसास होना चाहिए।

साथ जीने मरने की कसमें खाना जरुरी नहीं,
मगर तुम्हारी धड़कनों में मेरी सांस होना चाहिए।

दूरियां कितनी भी क्यों ना बढ़ने लगे हमारे बीच,
पर बातों की यादों का पिटारा हर पल दिल के पास होना चाहिए।

ये प्रवीण हर किसी पर मर मिटने वाला इंसान नहीं,
जिसे दिल से खेलने दे सकूँ वो शख़्स वाकई में ख़ास होना चाहिए।

                                                                      _pk_Nobody_

Saturday, September 21, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

मैं भी वक़्त के साथ मगरूर होने लगा हूँ अपने काम में,
पूरा समय मानो जैसे डूबा रहता हूँ किसी नशे के जाम में,
अगर तल्खियां थी तो सुलझाई भी जा सकती थी,
मगर कहीं न कहीं फर्क था मेरी सुबह और तुम्हारी शाम में।

जिस चीज़ की क़द्र कर सकते हो उसकी क़द्र करो,
क्यों हर चीज़ को तौलते फिरते हो तराजू के दाम में।

वैसे तो लोग ताह उम्र तलाशते हैं खुदा को,
लेकिन ना जाने क्यों लड़ते रहते हैं उन्हीं के नाम में।

आपकी शांति आपके अंदर ही कहीं छुपी हुई है,
इसलिए बेवजह मत ढूँढो अपना सुख खुदा या राम में।

माना कि ज़िन्दगी इन्तेहां-ए-तन्हाई है,
पर सबके के लिए कुछ न कुछ है ज़िन्दगी के परिणाम में।

                                                        _pk_Nobody_