ग़ज़ल
तू सच है तो इतना परेशान क्यों है,
नकाब ओढ़े शैतानों से हैरान क्यों है,
तेरा काम तेरी असल पहचान है,
तो अपनी पहचान से अनजान क्यों है.
काटों के बावजूद यहाँ सभी बाग़बानी कर रहे हैं,
मगर सिर्फ़ तेरे दिल और दिमाग़ में ही रेगिस्तान क्यों है.
हर तरफ बस्तियां ही बसी हुई हैं,
लेकिन तेरे अंदर का मकान वीरान क्यों है.
न कोई चोट, न कोई जख्म, न कोई घाव,
तो फिर यह शख्स इतना लहूलुहान क्यों है.
_pk_Nobody_