Monday, November 4, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

तू सच है तो इतना परेशान क्यों है, 
नकाब ओढ़े शैतानों से हैरान क्यों है, 
तेरा काम तेरी असल पहचान है, 
तो अपनी पहचान से अनजान क्यों है. 

काटों के बावजूद यहाँ सभी बाग़बानी कर रहे हैं, 
मगर सिर्फ़ तेरे दिल और दिमाग़ में ही रेगिस्तान क्यों है. 

हर तरफ बस्तियां ही बसी हुई हैं, 
लेकिन तेरे अंदर का मकान वीरान क्यों है.

न कोई चोट, न कोई जख्म, न कोई घाव, 
तो फिर यह शख्स इतना लहूलुहान क्यों है.

_pk_Nobody_

Sunday, October 13, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

अगर मुल्क दोनों का है तो दोनों होना चाहिए, 
हिन्दुओं को मस्ज़िद से और मुसलमानों को मंदिर से प्यार होना चाहिए, 
अरे छोड़ो सियासत के फालतू पैंतरे आजमाना, 
राम और रहीम दोनों के आबरू की बराबर इज़्ज़त होना चाहिए|

कौन फ़ैसला करेगा ये भी तय कौन करेगा, 
न्यायाधीश भी सभी पक्षों के मुताबिक़ होना चाहिए|

इस पूरे बवाल का परिणाम जो कुछ भी हो, 
लेकिन वो क़ुबूल हर किसी को होना चाहिए|

पंचायतों और मसलों को क्यों ना किनारे रख कर, 
उस विवादित जमीं पर अविश्‍वसनीय हिंदुस्तान होना चाहिए? 

_pk_Nobody_

Tuesday, October 8, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल

इनको हिफ़ाज़तों के पिंजरे अब अखरने लगे हैं, 
नए परिंदें भी अपनी आसमान की  आज़ादी माँगने लगे हैं, 
कल तक थे जो बच्चे गुड्डा-गुड़ियों से खेलते, 
वो आज तलवारों और कट्टों की फरमाइशें करने लगे हैं|

इंसान उन्नति तो बहुत तेज़ी से कर रहा है, 
लेकिन ये इंसान ना जाने क्यों आपस में मारने-मरने लगे हैं|

आज के युवा असली रिश्तों नातों को भूलकर, 
दूसरी चीज़ों पर अपने ज़ज़्बातों को सजाने लगे हैं|

एहसास, स्पर्श, भावनाओं की अब कोई क़द्र नहीं रह गई, 
आज के लोग तो बाज़ार में बिकने वाले खिलौने से ही मचलने लगे हैं|

इस प्रवीण ने सारी ज़िन्दगी गर्दन झुका कर गुज़ारी है, 
फिर भी ना जाने क्यों कुछ लोग हमसे भी अकड़ने लगे हैं|

इनको हिफ़ाजतों के पिंजरे अब अखरने लगे हैं, 
नए परिंदें भी अपनी आसमान की  आज़ादी माँगने लगे हैं|

_ pk_Nobody_