Tuesday, October 8, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल

इनको हिफ़ाज़तों के पिंजरे अब अखरने लगे हैं, 
नए परिंदें भी अपनी आसमान की  आज़ादी माँगने लगे हैं, 
कल तक थे जो बच्चे गुड्डा-गुड़ियों से खेलते, 
वो आज तलवारों और कट्टों की फरमाइशें करने लगे हैं|

इंसान उन्नति तो बहुत तेज़ी से कर रहा है, 
लेकिन ये इंसान ना जाने क्यों आपस में मारने-मरने लगे हैं|

आज के युवा असली रिश्तों नातों को भूलकर, 
दूसरी चीज़ों पर अपने ज़ज़्बातों को सजाने लगे हैं|

एहसास, स्पर्श, भावनाओं की अब कोई क़द्र नहीं रह गई, 
आज के लोग तो बाज़ार में बिकने वाले खिलौने से ही मचलने लगे हैं|

इस प्रवीण ने सारी ज़िन्दगी गर्दन झुका कर गुज़ारी है, 
फिर भी ना जाने क्यों कुछ लोग हमसे भी अकड़ने लगे हैं|

इनको हिफ़ाजतों के पिंजरे अब अखरने लगे हैं, 
नए परिंदें भी अपनी आसमान की  आज़ादी माँगने लगे हैं|

_ pk_Nobody_

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