ग़ज़ल
ज़िन्दगी के हर दुःख-दर्द में साथ तेरा हो,
उड़ूँ आसमान में लेकिन तुम ही मेरा बसेरा हो,
जब भी नाराज़ होगे मना लेंगें तुम्हें,
क्योंकि तुम ही मेरी अँधेरी रातों का सवेरा हो|
मेरी हर ख़ुशी का एक हिस्सा तुम्हारा हो,
और तेरी मुसीबतों का पहाड़ सिर्फ़ मेरा हो|
मुझे हर वक़्त भले ही तूफानों का क्यों ना सामना करना पड़े,
मगर तेरी ज़िन्दगी हर लम्हा बस ख़ुशी का दशहरा हो|
जब भी यह प्रवीण कभी किसी चीज़ में उलझ जाए,
तो तेरे पास मेरे लिए दुनिया भर के मशवरा हो|
ज़िन्दगी हर दुःख-दर्द में साथ तेरा हो,
उड़ूँ आसमान में लेकिन तुम ही मेरा बसेरा हो|
_pk_Nobody_
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