Monday, September 30, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey


ग़ज़ल 

जो नियत से पढ़ी जाए उसे नमाज़ कहते हैं, 
जो बातें दिल के तिजोरी में रखी जाए उसे राज़ कहते हैं, 
हमें अपने मुल्क के सभी धर्मों पर नाज़ ही तो है, 
इसलिए कश्मीर को आज भी हिंदुस्तान के सर का ताज कहते हैं.

बाबू, सोना, जानू, डार्लिंग तो आम अलफ़ाज़ हैं, 
हम तो अपनी वाली को प्यार से बेग़म जान कहते हैं.

जो आपके साथ ही रह कर आपसे चालबाज़ी करे, 
उन नालायकों को सबसे बड़ा धोखेबाज़ कहते हैं.

जिसे लोग हमारा अंत समझते हैं, 
हम उसे ही दबी जुबां में अपना आगाज़ कहते हैं.

और जो दुश्मनों पर कभी भी फट पड़े,
       उसे ही तो हिंदुस्तानी सेना की गाज कहते हैं.


जो नियत से पढ़ी जाए उसे नमाज़ कहते हैं, 
जो बातें दिल के तिजोरी में रखी जाए उसे राज़ कहते हैं, 
हमें अपने मुल्क के सभी धर्मों पर नाज़ ही तो है, 
इसलिए कश्मीर को आज भी हिंदुस्तान के सर का ताज कहते हैं|1|

_pk_Nobody_

Sunday, September 29, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

वो नादान बड़ी ख़ुशी से मोहब्बत में लुटने चला है,
मगर उसे खबर नहीं कि अपनी सोहबत बिगाड़ने चला है, 
लाख समझाया उसे लेकिन वो नहीं समझा, 
बेवकूफ़ बिन कश्ती के ही दरिया पार करने चला है|

माना कि इश्क बहुत खूबसूरत एहसास है, 
मगर इसमें पड़ कर ना जाने क्यों वो मरने चला है|

घड़े के जैसे टुटा हुआ दिल लेकर, 
वो उसमें अधूरे प्यार के किस्से को भरने चला है|

वो अपने माँ-बाप की ममता को नकारता आया है, 
मगर आज किसी हसीना पर हद से गुज़रने चला है|

अच्छी-खासी मस्त मौला ज़िन्दगी जी रहा है, 
फिर पता नहीं क्यों किसी लड़की के चक्कर में उजड़ने चला है|

_pk_Nobody_

Saturday, September 28, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

क़ाग़ज़ और कलम का भी कितना अज़ीब रिश्ता है,
क़ाग़ज़ तब तक कोरा है जब तब कलम उस पर नहीं घिसता है,
रंग की बात करें तो दोनों एक-दूसरे से काफ़ी जुदा हैं,
पर दोनों के मिल जाने से ही अच्छे अच्छों का दिमाग पिसता है।

लोग जानबूझकर अपना वक़्त बर्बाद करते हैं,
फिर खुद ही चिल्लाते हैं ये समय इतना क्यों रिस्ता है? 

उनसे परेशां मत हो जो तेरी पीठ पीछे बात करते हैं,
वो तेरी बात करते हैं क्यूंकि यह तेरी कमाई प्रतिष्ठा है।

बनाने वाले ने भी तुझे कितना हसीन बनाया है,
ना जाने वो भगवान ही है या कोई फरिश्ता है।

ये प्रवीण हर बात का जवाब मुँह पर ही दे सकता है,
मगर देता नहीं क्यूंकि मेरी परवरिश में बहुत शिष्टा है।

    _pk_Nobody_

Friday, September 27, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल

ज़िन्दगी की करवटें हमें बहुत कुछ सिखा जाती है,
ख़ुशी और गम का प्याला एक साथ पिला जाती है,
ज़िन्दगी हमारे ज़ज़्बातों की क़दर तो करती है,
मगर आखिरी वक़्त आने पर मिट्टी में मिला जाती है

रिश्ते कितनी भी शिद्दत से क्यों ना निभा लो,
पर सामने वाले की फ़ितरत दिमाग की नस हिला जाती है

जिन्हें आप बहुत शरीफ़ और मासूम समझते हैं,
अक़्सर उन्हीं के हरक़तें आपके मुहँ को सिला जाती है

कहने को तो ज़िन्दगी एक खूबसूरत सफ़र है,
लेकिन ये सफ़र आपको बहुत से लोगों का ज़हर पिला जाती है

ज़िन्दगी हमारे ज़ज़्बातों की क़दर तो करती है,
मगर आखिरी वक़्त आने पर मिट्टी में मिला जाती है

                                                                        _pk_Nobody_

Tuesday, September 24, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल
तेरी मजबूरियों की वजह से ये इंसां कहीं बेनाम न हो जाए,
हमारी पनपती मोहब्बत कहीं नीलाम हो जाए,
एतिहातन थोड़ी कोशिश तो करके देखते हैं,
वगरना हमारे अनकहे अलफ़ाज़ कहीं सरेआम न हो जाए!

मुझे पता है, हर चीज़ सलीके से होती है,
पर सलीकों से कहीं हमारा इश्क़ बिन गुठली के आम न हो जाए!

माना कि हम बात-बात पर लड़ते रहते हैं,
लेकिन किसी दिन कहीं हमारे दिलों के बीच कत्लेआम न हो जाए!

मुझे ख़बर है कि मेरे लिखे हर लफ्ज़ तेरे अंदर तक उतरते हैं,
लेकिन तुम्हारे कारण कहीं मेरी मोहब्बत की कलम बदनाम न हो जाए!

                                                                       _pk_Nobody_

Sunday, September 22, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल

रोज़ जिंदा रहने के लिए जीने की एक आस होना चाहिए,
जिसका फलक तक दीदार कर सकूँ वो चेहरा ख़ास होना चाहिए,
ज़िस्मानी मोहब्बत से मुझे परहेज़ नहीं,
लेकिन इश्क़ के दरमियां भी कुछ अनकहे एहसास होना चाहिए।

साथ जीने मरने की कसमें खाना जरुरी नहीं,
मगर तुम्हारी धड़कनों में मेरी सांस होना चाहिए।

दूरियां कितनी भी क्यों ना बढ़ने लगे हमारे बीच,
पर बातों की यादों का पिटारा हर पल दिल के पास होना चाहिए।

ये प्रवीण हर किसी पर मर मिटने वाला इंसान नहीं,
जिसे दिल से खेलने दे सकूँ वो शख़्स वाकई में ख़ास होना चाहिए।

                                                                      _pk_Nobody_

Saturday, September 21, 2019

New Ghazal By Praveen Kumar Pandey

ग़ज़ल 

मैं भी वक़्त के साथ मगरूर होने लगा हूँ अपने काम में,
पूरा समय मानो जैसे डूबा रहता हूँ किसी नशे के जाम में,
अगर तल्खियां थी तो सुलझाई भी जा सकती थी,
मगर कहीं न कहीं फर्क था मेरी सुबह और तुम्हारी शाम में।

जिस चीज़ की क़द्र कर सकते हो उसकी क़द्र करो,
क्यों हर चीज़ को तौलते फिरते हो तराजू के दाम में।

वैसे तो लोग ताह उम्र तलाशते हैं खुदा को,
लेकिन ना जाने क्यों लड़ते रहते हैं उन्हीं के नाम में।

आपकी शांति आपके अंदर ही कहीं छुपी हुई है,
इसलिए बेवजह मत ढूँढो अपना सुख खुदा या राम में।

माना कि ज़िन्दगी इन्तेहां-ए-तन्हाई है,
पर सबके के लिए कुछ न कुछ है ज़िन्दगी के परिणाम में।

                                                        _pk_Nobody_

Friday, September 13, 2019

New Shayari By Praveen Kumar Pandey

अपनी फिकर कर सबका ठेकेदार मत बन,
खुद का स्वाभिमान बना दूसरों का अहंकार मत बन,
यहां सब अपनी ही खिचड़ी पकाने में लगे हैं,
ऐतिहातन बेवजह सबका वफ़ादार मत बन।

अपनी कीमत स्वयं तय कर,
औरों के द्वारा खरीदे जाने वाला बाज़ार मत बन।

तेरी तरह यहाँ सभी सिपाही हैं,
उनको दबाकर उनका सरदार मत बन।

अपनी जुबां से सिर्फ अपनी बात कह,
हर जगह चौंच घुसाकर सबका दावेदार मत बन।

अपनी फिकर कर सबका ठेकेदार मत बन,
खुद का स्वाभिमान बना दूसरों का अहंकार मत बन,
यहां सब अपनी ही खिचड़ी पकाने में लगे हैं,
ऐतिहातन बेवजह सबका वफ़ादार मत बन।

_pk_Nobody_